जिन दीनो कोई नही था
इन यादों के गाँव में
अकेला ही शीतल होता था
यहाँ की ठंडी छाँव में
खालीपन तो था कुछ किंतु
खुश तो उसमें भी था मैं
आकर तुमने साथ दिया तो
कहाँ रहा फिर तन्हा मैं
उस पल सचेत किया दिमाग़ ने
शायद आदत से हो मजबूर
की पास आकर चले गये तो
क्या होगा, इक दिन तुम दूर
दुनिया देख रखी थी उसनें
दिन के बाद रात देखी थी
लिफाफो में बंद होते उसने
यादो की बारात देखी थी
bahut khoob aashish
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